गुवा गोलीकांड के शहीदों को नमन – पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने झारखंडी अस्मिता की रक्षा हेतु व्यापक जन-आंदोलन का किया आह्वान


पश्चिमी सिंहभूम, 9 सितम्बर।
पश्चिमी सिंहभूम जिले के गुवा में आज ऐतिहासिक गुवा गोलीकांड के शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई। कार्यक्रम में शामिल नेताओं और समाज के प्रतिनिधियों ने कहा कि यह कांड झारखंड आंदोलन के इतिहास का सबसे काला अध्याय था, जिसने आदिवासी अस्मिता और हक पर गहरी चोट की।

पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि गुवा गोलीकांड केवल अतीत का हिस्सा नहीं है, बल्कि आज भी यह हमें चेतावनी देता है कि अधिकार और अस्तित्व की रक्षा बिना संघर्ष संभव नहीं। उन्होंने समाज से एकजुट होने और मानकी-मुंडा, पाहन, मांझी बाबा, पड़हा राजा जैसे परंपरागत नेतृत्व के मार्गदर्शन में एक वृहद जन-आंदोलन शुरू करने का आह्वान किया।
कांग्रेस पर आदिवासी विरोधी नीतियों का आरोप
श्रद्धांजलि सभा में वक्ताओं ने कांग्रेस पर आदिवासी विरोधी मानसिकता अपनाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि —
बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के शासनकाल में गुवा गोलीकांड हुआ, जिसमें अस्पताल में इलाज करवा रहे आंदोलनकारियों को लाइन में खड़ा कर गोलियां बरसाई गईं। यह घटना न केवल मानवाधिकारों का हनन थी, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय रेडक्रॉस कानून का भी उल्लंघन था।
कांग्रेस ने 1961 की जनगणना से आदिवासी धर्म कोड हटाकर आदिवासी पहचान को मिटाने की कोशिश की।
अलग झारखंड राज्य और संथाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने जैसी मांगों को कांग्रेस ने हमेशा नकारा।
राज्य बनने के 25 साल बाद भी जारी संघर्ष
कार्यक्रम में यह भी कहा गया कि झारखंड राज्य बने 25 वर्ष हो गए, लेकिन हालात अब भी आदिवासी और मूलवासी हितों के खिलाफ खड़े हैं।
नगड़ी की खेतिहर जमीन बचाने का आंदोलन आज भी जारी है।
समाज के हक की आवाज उठाने वाले सूर्या हांसदा जैसे समाजसेवियों को फर्जी मुठभेड़ में खामोश कर दिया गया।q
सीएनटी-एसपीटी कानून मौजूद होने के बावजूद भूमिपुत्रों की जमीनें छीनी जा रही हैं।
सामाजिक और धार्मिक चुनौतियां
सभा में वक्ताओं ने कहा कि —
झारखंड की बेटियों से विवाह कर सामाजिक ताना-बाना तोड़ा जा रहा है।
धर्मांतरण की बढ़ती घटनाएं आदिवासी समाज के अस्तित्व के लिए खतरा हैं।
पाकुड़, साहिबगंज समेत कई जिलों में तेजी से बदलती जनसांख्यिकी (डेमोग्राफी) झारखंड के भविष्य को असुरक्षित बना रही है।

नई लड़ाई की जरूरत
सभा का निष्कर्ष यही रहा कि गुवा गोलीकांड के शहीद हमें यह सिखाते हैं कि संघर्ष ही अस्तित्व की गारंटी है। उनका बलिदान व्यर्थ न जाए, इसके लिए समाज को एक बार फिर एकजुट होना होगा।
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“गुवा के शहीदों का बलिदान हमें यह सिखाता है कि अस्मिता की रक्षा के लिए निर्णायक संघर्ष जरूरी है। यदि हम अब भी नहीं जागे, तो हमारी जमीन, हमारी संस्कृति और हमारी पहचान खतरे में पड़ जाएगी। गुवा की धरती से हमें नए आंदोलन का संकल्प लेना होगा।”