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Jamshedpur Shiv Mahapuran Katha: आचार्य विनयकांत ने बताया Rudraksha का रहस्य और शिव आराधना का वास्तविक महत्व

Jamshedpur Shiv Mahapuran Katha: आचार्य विनयकांत ने बताया Rudraksha का रहस्य और शिव आराधना का वास्तविक महत्व

जमशेदपुर: श्री राजस्थान शिव मंदिर, जुगसलाई में चल रही शिव महापुराण कथा के दूसरे दिन श्रद्धा और भक्ति का सुंदर संगम देखने को मिला। कथा की शुरुआत मुख्य यजमान रमेश अग्रवाल मेगोतिया ने भगवान शिव की विधिवत पूजा-अर्चना से की। इसके बाद व्यासपीठ की पूजा गोवर्धन गुप्ता ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर की।

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कथा वाचक आचार्य विनयकांत त्रिपाठी ने आज की कथा में शिव भक्ति से जुड़े बेहद महत्वपूर्ण रहस्य बताए, जिन्हें सुनकर श्रद्धालु भाव-विभोर हो उठे। उन्होंने कहा कि हजारों वर्षों की कठोर तपस्या के बाद जब भगवान शिव की आंखें खुलीं, तब उनके नेत्रों से गिरी कुछ बूंदों से ही रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई। यही रुद्राक्ष आज शिवभक्तों के लिए सबसे पवित्र माने जाते हैं।

आचार्य जी ने पौराणिक प्रसंग समुद्र मंथन

आचार्य जी ने पौराणिक प्रसंग समुद्र मंथन का भी जिक्र किया और बताया कि जब समुद्र मंथन हुआ था, तब जिन चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरी थीं, वहीं पर कुंभ, अर्ध कुंभ और महाकुंभ का आयोजन क्रमश: 3, 6 और 12 वर्षों में होता है।

आचार्य विनयकांत ने एक मुखी से लेकर चौदह मुखी तक के रुद्राक्षों का महत्व भी विस्तार से समझाया। उन्होंने बताया कि रुद्राक्ष की माला से जाप करने का भी एक विशेष तरीका होता है, जिसे श्रद्धापूर्वक अपनाना चाहिए।

उन्होंने शिवलिंग की उत्पत्ति और उसकी पूजा से जुड़ी गहराइयों को भी सरल शब्दों में समझाया। उन्होंने कहा कि हर महीने आने वाली शिवरात्रि का व्रत करने से पूरे महीने की पूजा का फल मिलता है, जबकि साल में एक बार आने वाली महाशिवरात्रि की पांच प्रहर की पूजा से साल भर की पूजा का पुण्य फल प्राप्त होता है।

आचार्य जी ने पौराणिक प्रसंग समुद्र मंथन का भी जिक्र किया और बताया कि जब समुद्र मंथन हुआ था, तब जिन चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरी थीं, वहीं पर कुंभ, अर्ध कुंभ और महाकुंभ का आयोजन क्रमश: 3, 6 और 12 वर्षों में होता है।

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